चयन का उद्देश्य

चयन का उद्देश्य

चयन का उद्देश्य होता है सबसे योग्य उम्मीदवारों लेना, जो कृत्य और संगठन की आवश्यकताओं को पूरा करते हों, यह जानना कि कौनसा कृत्य आवेदक सफल रहेगा, अगर रखा जाए। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कम्पनी सूचनाएं जुटाती है। आवेदकों के बारे में जैसे- आयु, योग्यता, दक्षता, अनुबन्ध आदि। कृत्य की आवश्यकताएं, उम्मीदवारों के प्रोफाइल से मेल खानी चाहिए। कई चरणों की चयन प्रक्रिया के बाद सबसे योग्य उम्मीदवार को चुनकर, अयोग्य उम्मीदवारों को अलग कर दिया जाता है। उम्मीदवार कितना कृत्य से मेल खाता है, यह जानना जरूरी है, क्योंकि यह कर्मचारी के कार्य की मात्रा और कुशलता को प्रभावित करता है। इसमें किसी प्रकार की असमानता संगठन को समय, पैसा और समस्या के रूप में क्षति पहुँचाती है, खासकर प्रशिक्षण व लागत के खर्चे में। समय के अन्तराल के साथ कर्मचारियों को कृत्य अरुचिकर और बोर प्रतीत होता है। यहाँ तक कि वह कम्पनी के बारे में अफवाहें या नकारात्मक सूचनाएं दे सकता है, जो लम्बे समय के लिए नुकसान पहुँचाती है। उचित समय में इसलिए लगातार नियंत्रण की आवश्यकता रहती है।

कर्मचारियों के चयन की प्रक्रिया

कार्मिकों के चयन से आशय प्रतिस्पर्धी उम्मीदवारों में से रिक्तियों को भरना है। दूसरे शब्दों में, यह कर्मचारियों का चयन या न चुनने की प्रक्रिया है। चयन करने के दौरान इन निम्नलिखित दो दृष्टिकोणों को

समझना चाहिए-
1. धनात्मक दृष्टिकोण- इस दृष्टिकोण के अनुसार योग्यता, प्रशिक्षण और आवेदकों का अनुभव, वांछित योग्यताओं से मेल खाना चाहिए व इन सबमें योग्य उम्मीदवार का चयन होना चाहिए। इस तरह से कम योग्यता वाले अपने आप बाहर हो जाते हैं।
2. नकारात्मक दृष्टिकोण- इस दृष्टिकोण से कम योग्यता और अनुभव वाले उम्मीदवार अलग कर दिए जाते हैं। अयोग्य उम्मीदवारों को किन्हीं कारण से हटाया जाता है और अंत में योग्य उम्मीदवार बचते हैं, उनका चयन होता है।

चयन नीति

चयन नीति कम्पनी की रोजगार नीति का अंग होती है। चयन नीति में नये कर्मचारियों की भर्ती, वर्तमान कर्मचारियों की पदोन्नति, स्थानान्तरण, पदावनति, जबरन छुट्टी, सेवा-मुक्ति, कर्मचारियों का प्रशिक्षण एवं विकास जैसे विषयों का समावेश होता है।

चयन नीति में, चयन का प्रक्रम, विभिन्न प्रकार की परीक्षाएं- परीक्षागत विषय, उनका महत्त्व तथा उन विषयों को चयन में दिया जाने वाला बल या भार, साक्षात्कार आदि सभी बातों का उल्लेख किया जाता है। चयन मण्डल का गठन, भर्ती के आन्तरिक एवं बाह्य स्रोत, विभेद एवं प्राथमिकताएं, चयन के मापदण्ड अथवा आधार, कम्पनी की चयन नीति के मुख्य आधार-बिन्दु होते हैं। कम्पनी की चयन नीतियाँ, कम्पनी की सामान्य नीतियों, सिद्धान्तों एवं प्रक्रम के प्रतिकूल नहीं हो सकती और न ही ये नीतियाँ, सामान्य जन नीति, देश के संविधान अथवा अन्य विधान के प्रतिकूल हो सकती हैं। नीतियों में स्पष्टता, लोचता, न्यायसंगतता आदि गुणों का विद्यमान होना आवश्यक है। नीतियों का समुचित प्रकाशन एवं प्रसारण किया जाना चाहिए। समय-समय पर नीतियों की उपयुक्तता की जाँच कर, उनमें आवश्यक संशोधन अथवा परिवर्तन किये जाने चाहिए। नीतियाँ मात्र दिखावे की वस्तु नहीं है बल्कि उनका कठोरता से पालन किया जाना चाहिए।
चाहिए-

एक उत्तम चयन नीति निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित होनी

1.चयन का कार्य योग्य व्यक्तियों को सौंपा जाना चाहिए। यह कार्य एक अकेले व्यक्ति के स्थान पर चयन मण्डल द्वारा किया जाना चाहिए।

3.चयन निर्धारित प्रमापों के आधार पर ही किया जाना चाहिए।

4.चयन के लिए आन्तरिक एवं बाह्य दोनों स्रोतों का उपयोग होना चाहिए।

5.चयन में व्यक्ति को महत्त्व न देकर उसकी योग्यता को महत्त्व दिया जाना चाहिए।

6.भिन्न-भिन्न पदों के लिए भिन्न-भिन्न चयन विधियों का उपयोग होना चाहिए।

7.चयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण को महत्त्व दिया जाना चाहिए।

8.चयन नीति उपक्रम की सामान्य नीति के अनुरूप होनी चाहिए।

9.चाहिए। चयन करते समय देश में प्रचलित विधान का ध्यान रखना

10.चयन नीति कठोर न होकर लोचशील होनी चाहिए। चयन नीति सरल, स्पष्ट एवं न्यायसंगत होनी चाहिए।

11.चयन नीति रोजगार उन्मुख होने के साथ-साथ व्यावसायिक मार्गदर्शन में भी सहायक होनी चाहिए।

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