मानवशक्ति प्रशिक्षण एवं विकास
मानवशक्ति प्रशिक्षण एवं विकास : कर्मचारी प्रशिक्षण
कर्मचारी के पास सैद्धान्तिक और प्रायोगिक ज्ञान, जिस कार्य को उसे करना है, होना ही चाहिए। सैद्धान्तिक ज्ञान को किसी शैक्षणिक संस्थान में भी पाया जा सकता है, परन्तु प्रायोगिक ज्ञान हेतु प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इस तरह से प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारी को कार्य की वास्तविक स्थितियों की जानकारी मिलती है और यह कार्य को बगैर गलती पूरा करने में सहायता करता है।
हमने अक्सर देखा है जब भी फैक्ट्री में नई मशीन स्थापित होती है, तो इससे पहले कि उससे वास्तविक उत्पादन हो उसे ट्रायल के आधार पर चलाया जाता है। “जिस तरह किसी मशीन को थोड़ा वक्त दिया जाता है, एक नए कर्मचारी को भी नए वातावरण में जमने के लिए, प्रशिक्षण अवधि की आवश्यकता होती है।”
आशय एवं परिभाषा
फिलिप्पो के अनुसार, एक कर्मचारी की किसी निश्चित
कृत्य हेतु ज्ञान व कौशल में वृद्धि ही प्रशिक्षण का कार्य है। प्रशिक्षण का प्रमुख उद्भव सीखना है। एक प्रशिक्ष नई आदतें, युद्ध कौशल और आवश्यक ज्ञान प्रशिक्षण के दौरान सीखता है जो उसके प्रदर्शन को बेहतर बनाने है मददगार है। प्रशिक्षण कर्मचारी को योग्य बनाता है कि वह अपना वर्तमान कृत्य अधिक बेहतर करे और खुद को उच्च क्षमता के कृत्य हेतु तैयार करे। प्रशिक्षण को अतः हम योजनाबद्ध कार्यक्रम की संरचना के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जो कर्मचारियों के प्रदर्शन को सुधारने, ज्ञान कौशल, बर्ताव और सामाजिक व्यवहार के लिए दिया जाता है।
डेल, एस. बीच के शब्दों में, “प्रशिक्षण एक संगठित प्रक्रिया है. जिसमें लोग ज्ञान या कौशल किसी निश्चित कार्य हेतु सीखते हैं। “
“इस तरह से प्रशिक्षण एक संगठित प्रक्रिया है जिसके द्वारा ज्ञान, क्षमता, प्रतिस्पर्धा, कौशल, व्यक्तित्व और उत्पादकता बढ़ती है।”
प्रशिक्षण के लक्षण
1.कृत्य के दौरान ज्ञान और कौशल में वृद्धि।
2..नौकरी उन्मुख प्रक्रिया, प्रकृति में व्यावसायिक
3.कृत्य आवश्यकताओं और कर्मचारी कौशल, ज्ञान व व्यवहार के बीच दूरी को भरता है।
4.कम समय की गतिविधि की रचना जो कि कार्यवाहकों के लिए जरूरी है।
प्रशिक्षण की आवश्यकता / कारण
1. मजदूर (कार्य) शक्ति को अधिक उपयोगी बनाना : प्रशिक्षण कर्मचारी को संगठन के लक्ष्य और कार्य जो उसे पूरे करने होते हैं, उनको समझना होता है। मजदूर उपकरणों को बेहतर तरीके से चलाना सीखते हैं और संगठन में अपनी उपयोगिता बढ़ाते हैं।
2. कर्मचारियों की दक्षता बढ़ाना : कार्मिकों को कार्य की वास्तविक परिस्थितियों, औजारों, उपकरण और वातावरण से परिचय कराना होता है। उन्हें प्रायोगिक तौर पर कार्य करना होता है। ‘ट्रायल और एरर’ तरीके को बेहतर प्रदर्शन के लिए अप्रशिक्षित कर्मचारियों हेतु इस्तेमाल नहीं करना पड़ता।
3. कार्य परिस्थितियों से परिचय : कार्मिकों को वास्तविक स्थितियों से सही कार्य करने हेतु सीख लेनी पड़ती है। फैक्ट्री में कार्यरत मजदूर शक्ति देश के विभिन्न भाग से संबंधित होती है। वे एक-दूसरे अपरिचित होते हैं। प्रशिक्षण उनकी आदतों, अभिरुचि और सोच बदलाव हेतु आवश्यक है।
4. उपकरणों और तरीकों से परिचय : प्रशिक्षु को नई मशीनों सीखने चाहिए। उपकरणों को चलाना सीखना चाहिए। उन्हें कार्य के विभिन्न तरीके भी
5. कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाना : प्रशिक्षित कार्मिक अपने कृत्य को बेहतर जानते हैं और अपने कार्य से संतुष्ट रहते हैं। यह संतुष्टता उनके मनोबल को बढ़ाती है।
प्रशिक्षण के लाभ
यह ही काफी नहीं है कि सही व्यक्तियों को उपयुक्त कृत्यों हेतु चुन जाए, बल्कि उनका कार्य की वास्तविक परिस्थिति और मशीनों एवं उपकरण को चलाने की बेहतर तकनीकों से परिचय भी कराना चाहिए। प्रशिक्षण, पूरा करने का एकमात्र साधन है। यह कार्य का प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करत है। यह कार्मिकों को सतर्क और सक्रिय रखने के लिए भी आवश्यक प्रशिक्षण नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के लिए उपयोगी है। यह कार्मिकों के सतर्क और सक्रिय रखने के लिए भी आवश्यक है।