आवेदन पत्रों का मूल्यांकन
आवेदन पत्रों का मूल्यांकन : आवेदन पत्रों का मूल्यांकन निम्नानुसार किया जा सकता है।
(a) क्लीनिकल विधि : इस विधि में आवेदन पत्रों का विश्लेषण इस तरह से किया जाता है कि उम्मीदवार के संबंध में वितरित जानकारी से सभी संभव निष्कर्षों को निकाला जाता है। व्यक्तिगत विशेषताओं को इस तरह आरलित किया जाता है कि उम्मीदवार को उपयुक्तता का मूल्यांकन कार्य की आवश्यकताओं के विरह किया जाता है। एक उचित रूप से तैयार किया गया आवेदन पत्र व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता, भावनात्मक स्थिरता, लेखन की क्षमता, आत्मविश्वास, वरिष्ठों एवं अन्य कमियों के प्रति व्यवहार आदि के संबंध में सूत्र उपलब्ध करा सकता है। क्लीनिकल विधि द्वारा आवेदन पत्र बनाने एवं दूसरे मूल्यांकन में मनोविज्ञान का उपयोग किया जाता है।
(b) भारीय विधि : इस विधि में विभिन्न अंकों/गुणों को किये जाते हैं। अंक आवेदक में फॉर्म में किये उत्तरों को पढ़कर दिये जाते हैं। आवेदन के विकास हेतु कर्मचारी की सूची के पद की पहचान जरूरी है।
5. चयन परीक्षा : आवेदन जो परीक्षण तथा प्रारंभिक साक्षात्कार में उत्तीर्ण हो जाते हैं उन्हें परीक्षा के लिए बुलाया जाता है। कार्य एवं कंपनी आधारित विभिन्न परीक्षाएं ली जा सकती हैं। एक परीक्षा दो अथवा अधिक व्यक्तियों के व्यहार व प्रदर्शन की तुलना के लिये व्यक्तिगत आधार उपलब्ध कराती है। परीक्षाएं उन अनुमानों पर आधारित होती है कि व्यक्ति कार्य संबंधी गुणों में भिन्न होते हैं जो मापा जा सकता है। परीक्षाएं चयन में पक्षपात को पूरक परीक्षण उपकरण की तरह उपयोग कर कम करने में मदद करती है। परीक्षाएं उम्मीदवारों एवं कार्य को बेहतर तरीके से मिलाने में मदद करती हैं। परीक्षाएं उन योग्यताओं को उजागर करती हैं जो आवेदन पत्र अथवा प्रारंभिक साक्षात्कार में छपी रहती हैं। परीक्षाए उपयोगी होती हैं जब आवेदकों की संख्या अधिक हों। दूसरे अलावा, प्रभावी होने के लिए परीक्षायें उचित रूप से तैयार एवं व्यवस्थित होनी हालांकि यह सरल विधि नहीं है। श्रेष्ठता में, यह उजागर करती है कि उम्मीदवार जिन्होंने पूर्व निर्धारित अंकों से ज्यादा प्राप्त किये हैं वे उनसे ज्यादा सफल होते हैं जिन्होंने कम किये अंकों से कम प्राप्त किये
6. चयन साक्षात्कार : साक्षात्कार मौखिक परीक्षा है जो रोजगार के प्रयोजन से आयोजित की जाती है यह एक औपचारिक, गूढ़ वार्तालाप है जो आवेदन की स्वीकार्यता का मूल्यांकन करता है। साक्षात्कार एक उत्तम चयन प्रक्रिया है। यह एक लचीली प्रक्रिया है जो अकुशल, कुशल प्रबन्धकीय और पेशेवर कर्मचारियों के चयन के लिये अपनायी जाती है। चयन साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्त्ता कार्य की आवश्यकता से मिलान करता है वह जानकारी जो उम्मीदवार के बारे में विभिन्न जरियों से प्राप्त की गई है तथा वह जो साक्षात्कार के दौरान दूसरे स्वयं के द्वारा अवलोकन से प्राप्त हुई हो। अतः साक्षात्कार एक प्रयोजनपूर्ण विचारों का आदान प्रदान है तथा प्रश्नों के उत्तर देने तथा दो या अधिक व्यक्तियों का वार्तालाप है। साक्षात्कार, साक्षात्कारकर्त्ता को एक अवसर प्रदान करता है:
1.उम्मीदवार को व्यक्तिगत रूप से आंकना ।
2.वे प्रश्न पूछना जो परीक्षा में न पूछे गये हों। उम्मीदवार के उत्साह एवं बौद्धिकता पर निर्णय करना ।
3.उम्मीदवार को व्यक्तिगत पसंद के आधार आंकलन करना चेहरे के भाव, प्रस्तुतीकरण, उत्तेजित / आर्शरित होना एवं और भी।
4.उम्मीदवार को कंपनी के संबंध में तथ्य देना, इसकी नीतियाँ, कार्यक्रम आदि तथा कंपनी के प्रति सद्भावना बढ़ाना।
फिर भी साक्षात्कार की अपनी सीमाएं होती हैं। विश्वसनीयता की कमी एक सीमा है। एक आवेदक के साक्षात्कार के बाद व्यक्तिगत एवं पसंदगी निर्णयों के कारण कोई भी दो साक्षात्कारकर्त्ता समान अंक नहीं दे सकते। वैधिकता का अभाव दूसरी कमी है। यह इसलिए कि कुछ विभाग नियत प्रश्नों का उपयोग करते हैं जिन पर घिरे अध्ययनों को संचालित किया जा सकता है।
7. संदर्भों की जाँच : संदर्भ उम्मीदवार के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं यदि वे या तो उसके पूर्व के नियोक्ताओं या जिनके साथ वह पूर्व में कार्य कर चुका हो। आवेदक सामान्यतया दो या तीन व्यक्तियों के नाम पूछ पाते हैं जो उसके अनुभव, कौशल, क्षमता आदि के बारे में जानते हों परन्तु उससे संबंधित नहीं होने चाहिए।
भावी नियोक्ता उम्मीदवार द्वारा उपलब्ध कराये गये संदर्भों की जाँच करता है एवं उसके पूर्व पेशे के बारे में खोज कराता है। हालांकि संदर्भों की जाँच करना जानकारी का अच्छा स्रोत हो सकता है परन्तु संदर्भित, उम्मीदवार के बारे में स्वतंत्र मत व्यक्त नहीं भी कर सकते हैं। यदि संदर्भ पूर्व नियोक्ता हुआ तो वह सामान्यतया या तो उसकी प्रशंसा करेगा या उसके कार्य तथा क्षमता की निंदा करेगा। ऐसे अतिरेक के भाव उम्मीदवार के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने में मददगार नहीं होते। ऐसे व्यक्ति भी हो सकते हैं जो उम्मीदवार के बारे में खराब बातें न करें क्योंकि यह उसके भविष्य का प्रश्न है। वे उम्मीदवार के बारे में अच्छी बात कहेंगे।
अंत में यह कहा जा सकता है कि संदर्भों की जाँच ज्यादा प्रयोजन हल नहीं करती क्योंकि संदर्भों से पक्षपात रहित मूल्यांकन उम्मीदवार के बारे में प्राप्त नहीं होता।
8. अंतिम चयन : इस स्थितिगत विभाग अथवा स्टाफ प्रबंधकों द्वारा निपटाया जाता है। चूँकि रोजगार पर रखे व्यक्तियों को पंक्ति अधिकारियों के नीचे काम करना होगा, उम्मीदवारों को उनकी ओर भेज दिया जाता है। पंक्ति अधिकारी अंतिम रूप से यह तय करेगा कि क्या कार्य दिया जाना है। यदि पंक्ति अधिकारी उत्पादन प्रबंधन या कैरियर उम्मीदवार के कार्य प्रदर्शन का आंकलन करेगा। यदि उम्मीदवार कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है तो उसे दूसरे कार्य पर आजमाना जायेगा। यदि उम्मीदवार का प्रदर्शन स्तरीय नहीं है तो उसे प्रशिक्षु के रूप समय रखा जायेगा। सामान्यतया इस स्थिति तक उम्मीदवार को अस्वीकृत नहीं किया जाता।
9. शारीरिक परीक्षण : चयन परिणाम के बाद एवं कार्य प्रस्ताव के पूर्व उम्मीदवार को शारीरिक स्वस्थता जाँच से गुजरना पड़ता है। उम्मीदवार को शारीरिक परीक्षण के या तो कंपनी के चिकित्सा के पास या इस कार्य के लिये अधिकृत चिकित्सा अधिकारी के पास भेजा जाता ऐसा शारीरिक परीक्षण निम्न जानकारी प्रदान करता है:
1.उम्मीदवार विशिष्ट कार्य के लिये शारीरिक रूप में स्वस्थ है अथवा नहीं?
2.उम्मीदवार को क्या स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं या भविष्य के लिये उसका मनोवैज्ञानिक व्यवहार कार्य में अवरोध उत्पन्न करेगा ?
3.क्या उम्मीदवार खराब स्वास्थ्य से पीड़ित है जो संतोषजनक कार्य के पूर्व ठीक कर लिया जायेगा ?
4.क्या उम्मीदवार के शारीरिक माप कार्य आवश्यकताओं के अनुरूप हैं अथवा नहीं?
1. कार्य का प्रस्ताव अक्सर उम्मीदवार को तब किया जाता है जब वह शारीरिक परीक्षण के बाद स्वस्थ घोषित किया गया हो। चिकित्सकीय परीक्षण के परिणामों को एक सूची में अभिलेखित कर लिया जाता है जो उसके व्यक्तिगत अभिलेख में संरक्षित होती है। ऐसे अभिलेख कर्मचारी के क्षतिपूर्ति दावे से नियोक्ता को बचायेंगे जो वैध नहीं है क्योंकि चोट अथवा बीमारी उस समय थी जब उसे रखा गया था।
10. कार्य प्रस्ताव : चयन प्रक्रिया का अगला कदम कार्य प्रस्ताव है जो इन उम्मीदों को दिया जाता है जिन्होंने सभी बाधाएं पार कर ली हों। कार्य प्रस्ताव नियुक्ति पत्र के रूप में होता है। ऐसे पत्र में सामान्यतया एक विधि रहती है जिस तक उम्मीदवार को कार्य पर उपस्थिति देना होती है। कार्य पर उपस्थिति का पर्याप्त समय दिया जाता है सभी नियुक्त उम्मीदवारों को। यह विशेष तौर पर आवश्यक होता है जब नियुक्त व्यक्ति पूर्व से रोजगार में हो, इस स्थिति में उसे पूर्व नियोक्ता को सूचना पत्र देना होता है। दूसरे अतिरिक्त कार्य दूसरे शहर में जाने को भी सदस्यों का स्थान बदलाव । हो सकता है जिसका अर्थ व्यापक तैयारी तथा संपत्ति एवं पारिवारिक सदस्य का स्थान बदलाव।
कुछ संगठन अस्वीकृत उम्मीदवारों को उनके चयन न होने की सूचना भी देते हैं उनका आवेदन हालांकि भविष्य के उपयोग के लिए संदर्भ के लिये हमेशा सुरक्षित रखे जाते हैं। सुरक्षित रख लिया जाता है। चयनित उम्मीदवारों के आवेदन भविष्य के लिए रखे जाते है
11. नियुक्ति का करारनामा : कार्य प्रस्ताव देने के बाद उम्मीदवार प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है जब नियोक्ता एवं उम्मीदवार के बीच करारनाम लागू किया जाता है बुनियादी जानकारी जो लिखित करारों में शामिल क जाती है कार्य के स्तर के अनुसार भिन्न हो सकती है समय पर कराना
में निम्न विवरण शामिल किये जाते हैं:
(a)कार्य शीर्षक
(b)कर्वक के विवरण
(c)दिनांक जबसे निरंतर रोजगार प्रारंभ हुआ
(d) वेतन एवं भुगतान के तरीके